धरती की पुकार
ये बदरा अब तो तुम
बरस जा हो
मेरी प्यास को
तुम आ कर
बुजा जा हो।
तुम से मिलने को
में तरस रही हूँ ।
एक बार बारिस
बन कर मिलने
तुम तो आजा वो ।
में तुम्हारे प्रेम की प्यासी हूँ
तभी तो तपन से तड़प रही हूँ।
बारिस बन कर
जब तुम आहोगें
हमारे प्रेम का जब इजहार
होयेंगा ।
में भी प्रपुलित हो कर
तुम से मिलने ऊपर
हरियाली बन कर
आहूगी।
तुम नदी,झरना बन कर
मिलने आना
मेरी प्यास बूजाना
में भी अपना
सृंगार करके
लता ,फूल बन के प्रेम का
इकरार करुँगी।
ये बदरा अब तो तुम
बरस जा हो
आठ माह से में
तुम्हारे प्रेम की
प्यासी बेटी हूँ।
अगर अब तुम न आहि
तो मेरे अंग(पेड़ पौधे) नही
नष्ट होने लगेंगे।
में खुद भी सूर्य की जलन
में जल जाहूगी ।
अब तो बारिस बन कर
मुझसे मिलने आ जा हो ।
मोहित
Monday, January 30, 2017
धरती की पुकार कविता
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