ना जानें किस आग में वो जल रही थी
मोहब्बत के सफर में वो चल रही थी ।
कोई नही था उसको पालने वाला
जानें किस के दम पर आज पल रही थी।
वो अपनी मंजिल की और बड़ रही थी,
लोंगो को ये बात भी क्यों खल रही थी।
आदि नही ,अनादि रौशनी की किरण थी
आज अपने सफर की और डल रही थी।
जग के सामने कभी झुकने नही दिया
और को मजबूत किया खुद गल रही थी।।
मोहित
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